
हिसार जाते वक्त संत रामपाल जी के अनुयाइयों से वार्ता हुई ! जिनमे से एक परिवार भम्भेवा से हिसार जा रहा था, अमित दास पुत्र धर्मपाल दास ने बताया :-
कि पूरा परिवार नाम उपदेशी होने के बावजूद उनके पिता जी ने उपदेश नहीँ लिया था ,उनको कैंसर था और वो लास्ट स्टेज पर थे ! हमारे कहने पर पिता जी ने संत रामपाल जी से नाम उपदेश लिया ! और भक्ति करना शुरू कर दिया अब तो वो हर समय मंत्र जाप मॆ लगे रहते थे.... संत रामपाल जी ने पिता जी को कई वार दर्शन दिये ! और जब एक महीना उपदेश लिये हो गया तो गुरु जी उनको सतलोक लेकर गये ! उन्होने विस्तार से बताया कि गुरु जी आये और बोला धर्मपाल तुम्हे सत्लौक लेकर जा रहा हूँ ! मेरे साथ चलो मॆ गुरु जी के साथ चल पड़ा गुरु जी मुझको तपत शीला के पास से लेकर गुजरे ! वहाँ जीव भुने जा रहे थे ,कील्कीला रहे थे ,तड़फ़ रहे थे , मॆ तब भी गुरु जी द्वारा दिये मंत्र का जाप कर रहा था ! मैने गुरु जी कि तरफ़ देखा ,अब गुरु जी नहीँ स्वयम कबीर साहेब मेरे साथ थे ! जब मैने प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा ::: तो कबीर साहेब ने बताया :- " बेटा मॆ स्वयम आया हूँ " रामपाल जी के रुप मॆ धरा पर ! अपनी आत्माओ को सत्लौक ले जाने के लिये ! फ़िर हम एक गुफा नुमा महल के पास पहुँचे ! वहाँ कैल दरवाजे से सटा हुआ बैठा था ! जब हम उसके नज़दीक गये तो उसने सिर झुका लिया ! और वह सिड्डि कि तरह हो गया हम उसके सिर पर पाँव रख कर उस गुफा मॆ घुस गये..... गुफा से आगे बाहर निकलने पर मुझे कबीर साहेब कई जगह लेकर गये !
जो मुझे अछी तरह से याद नहीँ हैं ! फ़िर आखिर मॆ हम सत लोक पहुँच गये ! मुझे आश्चर्य हुआ वहाँ बहूत बड़ा स्टेज था ! एक श्वेत गुम्ण्दनुमा महल मॆ और वहाँ अपने गुरु देव बैठे थे सिँघासन पर , चँवर अपने आप हिल रहा था ! बिल्कुल श्वेत आँखो को ना अख्रणे वाला रुप था गुरुदेव का ! फ़िर मैने कबीर साहेब कि ओर प्रश्न वाचक नज़रों से देखा ,तो स्वयम कबीर साहेब गुरुदेव के अंदर समा गये ! ओर फ़िर गुरु देव ने कहा : चलो तुम्हे वापिस जाना है ,तुम्हारी भक्ति अधूरी है, तुम्हारा यह शरीर खराब हो चुका है ! तुम्हे लेने आऊँगा ओर नये शरीर मॆ भक्ति करने के लिये वही मृतलोक मॆ भेजूंगा ! फ़िर भक्ति करना ओर अपनी भक्ति कि कमाई से हमेशा के लिये इन्ही महलों मॆ आना जो तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं ओर मुझे नीचे फेंक दिया............
ये सब मुझे अमित दास 8529408529, मेरे जीजा मनोज दास 9812210051 मेरी बहन ओर मेरी मम्मी के सामने बताया हमने उनको सोने के लिये बोला कि आप थक गये होंगे आराम कीजिये ! उन्होने कहा कि बेटा मनोज इसी भक्ति पर आप सब अडिग रहना मुझे कल गुरु जी लेने आयेंगे ! ओर सच मॆ अगले दिन मेरे पिता हम को छोड़ कर चले गये ! उनका शरीर अगले पाँच घंटे तब तक अग्नि ना दें डी गयी गरम रहा जिसे देख कर गाँव के लॉग ओर डॉक्टर आचम्भित थे........
लेखक :- नरेश चंद्र आर्य जींद