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बन्दीछोड़ दीन दयाल परमेश्वर जी द्वारा हम तुच्छ जीवो को एक कथा द्वारा कैसा अमृत ज्ञान दिया है :-


बन्दीछोड़ दीन दयाल परमेश्वर जी द्वारा हम तुच्छ जीवो को एक कथा द्वारा कैसा अमृत ज्ञान दिया है :-
Sat Saheb ji
*गरीब,वो काफर(दुस्ट) जो अंतरकाती,*
*वो काफर जो देवल जाती।।*
बन्दी छोड़ बताते है की जो लोग काफर जो व्यवहार में कपट रखते है दूसरे के बारे में गलत विचार रखते,मन में दोष रखकर कार्य करते है आप सतकर मानना जो लोग जैसा भाव रखकर किसी से व्यवहार करते है सामने वाले में भी वैसा भाव आयेगा और बताते है की वो भी काफर है,जो शास्त्रविधि को त्याग कर मन्दिर,मस्जिदों की पूजा करते है।
एक नगरी के राजा अपनी नगरी में घूम रहे थे ।जब वो घूम फिर कर वापिस आये तो आकर अपने मंत्रीयो को कहा की जब हम नगरी में घूम रहे थे तब उस (किसी जगह के बारे में) स्थान पर जो एक लकड़ी बेचने वाला दुकानदार है जब उसकी दुकान के सामने से गुजरे तो मन में ये दोष आता है वो निर्दोष आदमी दिख रहा है फिर भी मन में आता है की इस दुकानदार को सूली तुड़वा(फाँसी की सजा) दूँ।
इक मंत्री समझदार था उसने इक सन्त भगत से सलाह ली की राजा ये कहते है की ऐसे ऐसे एक लकड़ी बेचने वाला दुकानदार है जब भी उसकी दुकान के सामने से गुजरता हूँ तो मेरे मन में दोष आता है की उस दुकानदार को फाँसी की सजा दे दूँ ।
मंत्री को उस सन्त भगत ने बताया की जो लकड़ी बेचने वाला दुकानदार है उसके मन मे राजा के प्रति दोष है की ये राजा मर जाये तो तेरी चन्दन लकड़ी बहुत बिकेगी,सब सेठ लोग ले जायेगे नम्बर बनाने के लिए तेरे पास बहुत धनमाल हो जायेगा।
फिर वो सन्त भगत और मंत्री उस दुकानदार के पास गए और बोले की सच बताओ नही तो तेरी बहुत बुरा होने वाला है उसने कहा क्या हुआ तो मंत्री बोला की राजा ये कहते है मेरा ऐसा दिल करता है की तेरे को सूली तुड़वा देवे।
अब बताओ तेरे मन में राजा के प्रति क्या दोष है सच बताना।
सच्ची बताआगे तो तेरा पीछा छूटेगा नही तो बात बिगड़ ली है।
उस दुकानदार ने सच बता दिया की मै ये सोचता था की ये राजा मर जाये तो तेरी चन्दन की लकड़ी बहुत बिकेगी।
मंत्री बोला निक्कमे क्यों अपना बुरा करवा रहा है।इस तरह उसकी भवना बदल दी ऐसा हो गया की दुकानदार अब ये सोचता था की राजा युग युग जीये ऐसा अच्छा राजा कब कब मिले।इस तरह उसकी भावना बदल दी ।
मंत्री ने कहा राजा को की अब आप जाइये फिर राजा गए अपने समय पर और वापिस आया तो मंत्री ने पूँछा की क्या रहा तब राजा ने कहा आज मेरे मन मे उस दुकानदार के प्रति कोई दोष नही आया बल्कि ऐसा विचार आया की ये तो बहुत अच्छा नागरिक है ।
यहाँ वही बात बन्दी छोड़ कहते है की आप ने अब तक लोकवेद(सुना सुनाया ज्ञान),
दन्तकथा सुनी थी भगति के मार्ग की इस तत्व ज्ञान से परिचत नही थे।
आप सतकर मानना जो मन में दोष रखकर कार्य करते है और जैसा भाव रखकर किसी से व्यवहार करते है तो सामने वाले में भी तुरन्त वैसा ही भाव आयेगा।
*आप जब भी किसी से कोई व्यवहार करे अपनी सच्ची आत्मा से करे सामने वाला आप से ब्लेकमेल(दोखा) नही कर पायेगा ये सत्य माने।*
*जय बन्दी छोड़ जी की जय हो*
*साभार:- संत रामपाल जी* *महाराज के सत्संगों से।*
सत साहेब जी मालिक के ज्ञान प्रचार हेतू *शेयर* करे|

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