Subscribers Live Count

“कौन तथा कैसा है कुल का मालिक?”

“कौन तथा कैसा है कुल का मालिक?”


  • Jagat Guru Rampal Jiसंत रामपाल जी महाराज
    जिन-जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा को प्राप्त किया उन्होंने बताया कि कुल का मालिक एक है। वह मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है। जिसके एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ सूर्य तथा करोड़ चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक है। उसी ने नाना रूप बनाए हैं। परमेश्वर का वास्तविक नाम अपनी-अपनी भाषाओं में कविर्देव (वेदों में संस्कृत भाषा में) तथा हक्का कबीर (श्री गुरु ग्रन्थ साहेब में पृष्ठ नं. 721 पर क्षेत्राीय भाषा में) तथा सत् कबीर (श्रीधर्मदास जी की वाणी में क्षेत्राीय भाषा में) तथा बन्दी छोड़ कबीर (सन्त गरीबदास जी के सद्ग्रन्थ में क्षेत्रीय भाषा में) कबीरा, कबीरन् व खबीरा
    या खबीरन् (श्री र्कुआन शरीफ़ सूरत फुर्कानि नं. 25, आयत नं. 19, 21, 52, 58, 59 में क्षेत्राीय अरबी भाषा में)। इसी पूर्ण परमात्मा के उपमात्मक नाम अनामी पुरुष, अगम पुरुष, अलख पुरुष, सतपुरुष, अकाल मूर्ति, शब्द स्वरूपी राम, पूर्ण ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं, जैसे देश के प्रधानमंत्राी का वास्तविक शरीर का नाम कुछ और होता है तथा उपमात्मक नाम प्रधान मंत्री जी, प्राइम मिनिस्टर जी अलग होता है। जैसे भारत देश का प्रधानमंत्री जी अपने पास गृह विभाग रख लेता है। जब वह उस विभाग के दस्त्तावेजों पर हस्त्ताक्षर करता है तो वहाँ गृहमंत्री की भूमिका करता है तथा अपना पद भी गृहमन्त्री लिखता है, हस्त्ताक्षर वही होते हैं। इसी प्रकार ईश्वरीय सत्ता को समझना है।
    जिन सन्तों व ऋषियों को परमात्मा प्राप्ति नहीं हुई, उन्होंने अपना अन्तिम अनुभव बताया है कि प्रभु का केवल प्रकाश देखा जा सकता है, प्रभु दिखाई नहीं देता क्योंकि उसका कोई आकार नहीं है तथा शरीर में धुनि सुनना आदि प्रभु भक्ति की उपलब्धि है।
    आओ विचार करें - जैसे कोई अंधा अन्य अंधों में अपने आपको आँखों वाला सिद्ध किए बैठा हो और कहता है कि रात्राी में चन्द्रमा की रोशनी बहुत सुहावनी मन भावनी होती है, मैं देखता हूँ। अन्य अन्धे शिष्यों ने पूछा कि गुरु जी चन्द्रमा कैसा होता है। चतुर अन्धे ने उत्तर दिया कि चन्द्रमा तो निराकार है वह दिखाई थोड़े ही दे सकता है। कोई कहे सूर्य निराकार है वह दिखाई नहीं देता रवि स्वप्रकाशित है इसलिए उसका केवल प्रकाश दिखाई देता है। गुरु जी के बताये अनुसार शिष्य 2) घण्टे सुबह तथा 2) घण्टे शाम आकाश में देखते हैं। परन्तु कुछ दिखाई नहीं देता। स्वयं ही विचार विमर्श करते हैं कि गुरु जी तो सही कह रहे हैं, हमारी साधना पूरी 2) घण्टे सुबह शाम नहीं हो पाती। इसलिए हमंे सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश दिखाई नहीं दे रहा। चतुर गुरु जी की व्याख्या पर आधारित होकर उस चतुर अन्धे(ज्ञान नेत्रा हीन) की व्याख्या के प्रचारक करोड़ों अंधे (ज्ञाननेत्रा हीन) हो चुके हैं। फिर उन्हें आँखों वाला (तत्वदर्शी सन्त) बताए कि सूर्य आकार में है और उसी से प्रकाश निकल रहा है। सूर्य बिना प्रकाश किसका देखा? इसी प्रकार चन्द्रमा से प्रकाश निकल रहा है नेत्राहीनों! चन्द्रमा के बिना रात्राी में प्रकाश कैसे हो सकता है? जैसे कोई कहे कि ट्यूब लाईट देखी, फिर कोई पूछे कि ट्यूब कैसी होती है जिसकी आपने रोशनी देखी है? उत्तर मिले कि ट्यूब तो निराकार होने के कारण दिखाई नहीं देती। केवल प्रकाश देखा जा सकता है। विचार करें:- ट्यूब बिना प्रकाश कैसा?
    यदि कोई कहे कि हीरा स्वप्रकाशित होता है। फिर यह भी कहे कि हीरे का केवल प्रकाश देखा जा सकता है, क्योंकि हीरा तो निराकार है, वह दिखाई थोड़े ही देता है, तो वह व्यक्ति हीरे से परिचित नहीं है। फोकट जौहरी बना है। जो परमात्मा को निराकार कहते हैं तथा केवल प्रकाश देखना तथा धुनि सुनना ही प्रभु प्राप्ति मानते हैं वे पूर्ण रूप से प्रभु तथा भक्ति से अपरिचित हैं। जब उनसे प्रार्थना की कि कुछ नहीं देखा है तुमने, अपने अनुयाईयों को भ्रमित करके दोषी हो रहे हो। न तो आपके गुरुदेव के तत्वज्ञान रूपी नेत्रा हैं तथा न ही आपके, दुनियाँ को भ्रमित मत करो। इस बात पर सर्व अन्धों (ज्ञान नेत्रा हीनों) ने उठा लिए लट्ठ कि हम तो झूठे, तूं एक सच्चा। आज वही स्थिति मुझ दास(रामपाल दास) के साथ है।

    प्रश्न:- इस बात का निर्णय कैसे हो कि किस सन्त के विचार ठीक है किसके गलत हैं?

    उत्तर:- मान लिजिए जैसे किसी अपराध के विषय में पाँच वकील अपना-अपना विचार व्यक्त कर रहे हैं। एक कहे कि इस अपराध पर संविधान की धारा 301 लगेगी, दूसरा कहे 302, तीसरा कहे 304, चैथा कहे 306 तथा पाँचवां वकील 307 को सही बताए।
    ये पाँचों ठीक नहीं हो सकते। केवल एक ही ठीक हो सकता है यदि उसकी व्याख्या अपने देश के पवित्रा संविधान से मिलती है। यदि उसकी व्याख्या भी संविधान के विपरीत है तो पाँचों वकील गलत हैं। इसका निर्णय देश का पवित्रा संविधान करेगा जो सर्व को मान्य होता है। इसी प्रकार भिन्न-भिन्न विचारधाराओं में तथा साधनाओं में से कौन-सी शास्त्रा अनुकूल है या कौन-सी शास्त्रा विरुद्ध है? इसका निर्णय पवित्रा सद्ग्रन्थ ही करेंगे, जो सर्व को मान्य होना चाहिए (यही प्रमाण पवित्रा श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में)।

    प्रश्न:- कुछेक शास्त्राविधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) करने वाले हठ योग के आधार से घण्टों एक स्थान पर बैठकर ध्यान करके बताते हैं कि हमें प्रकाश दिखाई देता है। वह क्या है?

    उत्तर:- जैसे सूर्य का प्रकाश तालाब में गिरा तालाब के जल से प्रकाश का प्रतिबिम्ब दिवार पर बन जाता है। दिवार पर सूर्य नहीं दिखाई देता केवल मन्दा.2 प्रकाश दिखाई देता है। वह सूर्य नहीं है तथा न ही उसका पूर्ण प्रकाश है। उसको देख कर जो कहता है कि सूर्य का प्रकाश देखा परन्तु सूर्य नहीं है निराकार है तो वह नशा किए हुऐ है या मन्दबुद्धि है। इसी प्रकार अधूरे ज्ञान के आधार पर तत्वज्ञान रहित सन्त तथा उनके अनुयाई कहते हैं परमात्मा निराकार है केवल प्रकाश ही देखा जा सकता है। पूर्ण परमात्मा (सतपुरूष)साकार है उसकाशरीर मानव सदृश प्रकाशमय है। उसका प्रकाश अन्य ब्रह्मण्डों प्रतिबिम्ब रूप में दृष्टिगोचर है। जो ब्रह्मण्ड में गिर रहा है। उस प्रतिबिम्ब को देखकर व्याख्या की जा रही है कि परमात्मा का प्रकाश देखा परन्तु परमात्मा निराकार है वह दिखाई नहीं देता। जब पूर्ण साधना शास्त्राविधि अनुसार की जाती है तो उस से साधक की दिव्यदृष्टि खुल कर पूर्ण परमात्मा के प्रकाशमय शरीर के दर्शन होते हैं। परमात्मा मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है जो कहते है कि परमात्मा का प्रकाश देखा तो भी प्रकाश परमात्मा नहीं हुआ। क्योंकि सर्व सद्ग्रन्थों में लिखा है कि परमात्मा की प्राप्ति करनी चाहिए। परमात्मा की प्राप्ति से परमशान्ति होती है। जैसे कोई कहे कि हलवा (कड़हा) प्रसाद की महक आ रही है महक हलवा (कड़हा) प्रसाद नहीं है। महक से पेट नहीं भरता तथा न ही हलवे का स्वाद आता है। यह तो हलवा खाने से ही बात बनेगी। इसलिए जो कहते है कि परमात्मा का प्रकाश देखा वे परमात्मा के लाभ से हलवे की तरह वंचित है। उनसे प्रार्थना है कि उस परमात्मा को प्राप्त करने की विधि मुझ दास (रामपाल दास) के पास है। निःशुल्क प्राप्त करें।
                जिन आँखों वालों (पूर्ण सन्तों) ने चन्द्रमा (पूर्ण परमात्मा) को देखा परमात्मा पाया उन में से कुछ के नाम हैं:-
    (क) आदरणीय धर्मदास साहेब जी (ख) आदरणीय दादू साहेब जी (ग) आदणीय मलूक दास साहेब जी (घ) आदरणीय गरीबदास साहेब जी (ड़) आदरणीय नानक साहेब जी (च) आदरणीय घीसा दास साहेब जी आदि।



Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !