कबीर साहेब जब 600 साल पूर्व आए तब उन्होंने कई करिश्मा दिखाए। उनमें से एक है दिल्ली के राजा सिकंदर लोदी की जलन का रोग केवल उपचार से ठीक करना। राजा जलन जैसे आसाध्य रोग से पीड़ित था और सब तरफ से ईलाज आदि करवाकर थक चुका था लेकिन कोई आराम नहीं था। तब बादशाह को किसी ने कबीर साहेब के बारे में बताया कि वे महापुरुष ही ये रोग ठीक कर सकते हैं केवल सिकंदर को भी याद आया कि यह तो वही हैं जिन्होंने मरी हुई गाय को जीवित कर दिया था। जब खुद पर आपदा आती है तो कोई जाति व अमीरी गरीबी नहीं देखता उसे सिर्फ अपनी जान बचाने की सूझती है। इसी प्रकार दिल्ली नरेश भी काशी पहुंच गए ।वंन के राजा वीरसिंह बघेल तो कबीर जी को पूर्ण परमात्मा के रूप में पहचान चुके थे। सिकंदर लोदी ने सब व्यथा वीरसिंह बघेल को बताई तो उन्होंने भी कहा कि कबीर जी ही उन्हें रोग मुक्त कर सकते हैं। और वे आश्रम की ओर से जा रहे थे। वहाँ राजा सिकंदर लोदी ने अहंकार वश रामानंद जी (जो कबीर साहेब को परमात्मा के रूप में देखा रूप में पहचान की गई थी लेकिन सबके सामने कबीर जी के गुरू का अभिनय कर रहे थे) का किसी बात की कहासुनी पर वध कर दिया राजा बहुत घबरा गया कि एक पाप का बोझ तो उतरा भी नहीं कि एक बदा पाप और इकट्ठा कर लिया। राजा को डर था कि कबीर जी उन्हें माफ कर देंगे या नहीं लेकिन फिर भी कबीर परमात्मा ने राजा को सांत्वना देते हुए आशिर्वाद दिया जिससे पल भर में ही उनका जलन का रोग गायब हो गया। और कबीर साहेब जी ने अपने गुरुदेव स्वामी रामानंद जी को भी वापस जीवित कर दिया। उसके पश्चात रामानंद जी ने कभी हिंदू-मुस्लिम मे भेदभाव नहीं किया। और सिकंदर लोदी ने कहा की जिससे भर भर में ही हर्ष का का रोग मिट गया। और कबीर साहेब जी ने अपने गुरुदेव स्वामी रामानंद जी को भी वापस जीवित कर दिया। उसके पश्चात रामानंद जी ने कभी हिंदू-मुस्लिम मे भेदभाव नहीं किया। और सिकंदर लोदी ने कहा की जिससे भर भर में ही हर्ष का का रोग मिट गया। और कबीर साहेब जी ने अपने गुरुदेव स्वामी रामानंद जी को भी वापस जीवित कर दिया। उसके पश्चात रामानंद जी ने कभी हिंदू-मुस्लिम मे भेदभाव नहीं किया। और सिकंदर लोदी ने कहा की
कबीर दर्शन दीन्हा जबै, तपन भई सब दूर।
2. मुर्दे को जीवित करना
कबीर साहेब के चमत्कार मूर्खों को भी जीवित करना इसके दो सटीक उदाहरण है काम और कमाली जो दोनों के ही मृत थे
- कमाल को जीवित करना
दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी के पीर शेखतकी बादशाह सिकंदर से नाराज हो गए इसके कारण पूछने पर पीर शेखतकी ने बताया कि वह कबीर साहेब की परीक्षा लेना चाहती है अगर उस कबीर साहेब को मुर्दा को जिंदा कर दिया जाता तो वह मान लेगा कि वह भगवान है यह बात जानकर राजा ने कबीर साहेब से प्रार्थना की और सारी समस्या बताई। इस पर कबीर साहिब ने कहा ठीक है और एक सुबह वह सब नदी के किनारे पर खड़े हुए थे पर कबीर साहेब सिकंदर लोदी और उनके पीर शेखतकी भी थे। केवल नदी में 10 -12 वर्ष का मृत लड़का का शव बहता हुआ दिखाई दिया। तभी कबीर साहिब ने शेखतकी से कहा कि हे! पीर पहले आप इस मुर्दे को जिंदा करने की कोशिश करें। इस बात पर वहाँ उपस्थित प्रतिभागियों और अन्य लोगों द्वारा शेखतकी को कहा गया कि मुर्दे को जिंदा करें। केवल शेखतकी पीर ने अपनी सारी तंत्र मंत्र की विद्या करते हुए इतने में वह मुर्दा बहता हुआ आगे चला गया। तो उस पीर ने कहा की मुर्दे थोड़ा जिंदा होते हैं, यह कबीर हम सबको भ्रमित कर, मुर्दे के बहने का इंतजार कर रहा है। फिर परमात्मा कबीर साहिब ने हाथ से इशारा किया और वह मुर्दा पानी के वेग के विपरीत दिशा मे चल कर करबीर साहिब के सामने आकर रुक गई। पानी की लहरें नीचे से बह रही थी और मृत लड़के उसके ऊपर रुका था। कबीर साहिब ने कहा कि हे! जीवात्मा जहाँ भी है कबीर हुकम से मुर्दे में प्रवेश कर और खडा हो। कबीर साहिब ने इतना ही कहा था कि की शव में संकर हुआ और जीवित होकर खडा हो गया। कबीर साहेब के चरणों में दंडवत प्रणाम किया। परमात्मा की जयकार लगाई और सबको बताया कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा है। वहाँ पर सभी उपस्थित जनों ने कहा की कबीर साहिब ने तो काम कर दिया। तो उस लड़के का नाम कम ही रखा गया। मुर्दे के बहने का इंतजार कर रहा है। फिर परमात्मा कबीर साहिब ने हाथ से इशारा किया और वह मुर्दा पानी के वेग के विपरीत दिशा मे चल कर करबीर साहिब के सामने आकर रुक गई। पानी की लहरें नीचे से बह रही थी और मृत लड़के उसके ऊपर रुका था। कबीर साहिब ने कहा कि हे! जीवात्मा जहाँ भी है कबीर हुकम से मुर्दे में प्रवेश कर और खडा हो। कबीर साहिब ने इतना ही कहा था कि की शव में संकर हुआ और जीवित होकर खडा हो गया। कबीर साहेब के चरणों में दंडवत प्रणाम किया। परमात्मा की जयकार लगाई और सबको बताया कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा है। वहाँ पर सभी उपस्थित जनों ने कहा की कबीर साहिब ने तो काम कर दिया। तो उस लड़के का नाम कम ही रखा गया। मुर्दे के बहने का इंतजार कर रहा है। फिर परमात्मा कबीर साहिब ने हाथ से इशारा किया और वह मुर्दा पानी के वेग के विपरीत दिशा मे चल कर करबीर साहिब के सामने आकर रुक गई। पानी की लहरें नीचे से बह रही थी और मृत लड़के उसके ऊपर रुका था। कबीर साहिब ने कहा कि हे! जीवात्मा जहाँ भी है कबीर हुकम से मुर्दे में प्रवेश कर और खडा हो। कबीर साहिब ने इतना ही कहा था कि की शव में संकर हुआ और जीवित होकर खडा हो गया। कबीर साहेब के चरणों में दंडवत प्रणाम किया। परमात्मा की जयकार लगाई और सबको बताया कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा है। वहाँ पर सभी उपस्थित जनों ने कहा की कबीर साहिब ने तो काम कर दिया। तो उस लड़के का नाम कम ही रखा गया। जीवात्मा जहाँ भी है कबीर हुकम से मुर्दे में प्रवेश कर और खडा हो। कबीर साहिब ने इतना ही कहा था कि की शव में संकर हुआ और जीवित होकर खडा हो गया। कबीर साहेब के चरणों में दंडवत प्रणाम किया। परमात्मा की जयकार लगाई और सबको बताया कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा है। वहाँ पर सभी उपस्थित जनों ने कहा की कबीर साहिब ने तो काम कर दिया। तो उस लड़के का नाम कम ही रखा गया। जीवात्मा जहाँ भी है कबीर हुकम से मुर्दे में प्रवेश कर और खडा हो। कबीर साहिब ने इतना ही कहा था कि की शव में संकर हुआ और जीवित होकर खडा हो गया। कबीर साहेब के चरणों में दंडवत प्रणाम किया। परमात्मा की जयकार लगाई और सबको बताया कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा है। वहाँ पर सभी उपस्थित जनों ने कहा की कबीर साहिब ने तो काम कर दिया। तो उस लड़के का नाम कम ही रखा गया।
- कमाली को जीवित करना
शेखतकी ने देखा यह कबीर तो किसी प्रकार का कूब नहीं आ रहा है। तब शेखतकी ने जनता से कहा कि यह कबीर जादूगर है जैसे ही जंतर-मंतर मैच आम जनता और बादशाह सिकंदर की बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। सभी मुसलमानों से कहा कि तुम मेरा साथ दो वरना बात करने लगोगे। तब मुसलमानों ने कहां जैसे आप कहेंगे हम ऐसे ही करेंगे। शेखतकी ने कहा कि यह कबीर को तब भगवान मानेंगे जब मेरी लड़की को जीवित कर देगी, जो कब्र में दबी हुई है। " और सब जगह ढिंडोरा पिटवा दूंगा की कबीर ही भगवान है। बादशाह सिकंदर ने परमात्मा कबीर साहिब से प्रार्थना की कि, की वह शेखतकी की लड़की को जिंदा कर दे। बादशाह सिकंदर को परमात्मा पर विश्वास था क्योंकि वह परमात्मा के चमत्कार से वाकिफ था। और फिर शेखतकी की लड़की जो कब्र में दफना दी गई थी। तब हजारों की संख्या में लोग कब्र के पास इकट्ठा हो गए और दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी भी अपने जोड़े के साथ गए और कब्र को फुड़वाने गए। तब फिर परमात्मा कबीर साहिब ने पीर शेखतकी से कहा की आप अपनी लड़की को जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं। सभी उपस्थित जनों ने कहा कि इसके पास कुछ नहीं है आप केवल दया करें। फिर कबीर साहिब ने तीन बार कहा की शेखतकी की लड़की तू जिंदा हो जा। । वह जिंदा नहीं हुआ। इस पर शेखतकी बहुत खुश हुई। उसे अपनी लड़की के जिंदा न होने का दुख नहीं हुआ। खुश हुआ। उसे अपनी लड़की के जिंदा न होने का दुख नहीं हुआ। खुश हुआ। उसे अपनी लड़की के जिंदा न होने का दुख नहीं हुआ।
कबीर राज तजना सहज है सहज त्रिया का नेह!
मान बड़ाई ईर्ष्या, दुर्बल तजना ये ्या
कबीर साहिब ने कहा कि हेसुता तू जहाँ कहीं भी इस लड़की के शरीर में प्रवेश कर रही है। इतना ही कहना कि वह लड़की जीवित हो गई है। और कबीर साहिब जी को दंडवत प्रणाम किया। यह देख सभी लोगों ने कहा कि कम कर दिया और इस कारण से उस लड़की का नाम कमाली रखा गया।
3. काशी में बहुत बड़ा भंडारा करना
कबीर भगवान को काशी शहर से भगाने के उद्देश्य से हिंदू और मुसलमानों के धर्मगुरुओं ने साजिश के तहत झूठी चिट्ठी मैं निमंत्रण भेजा कि कबीर जुलाहा 3 दिन का भोजन भंडारा करेगा शेख तकी जो राजा सिकंदर सिंह की धार्मिक गुरु था वह इसका मुख्य साजिशकर्ता था लेकिन कबीर परमात्मा समर्थकों ने स्वयं अपने भक्त रावदास के साथ कुटया में विराजमान थे और अपनी लीला करते हुए उन्होंने सतलोक से नो लाख बॉडी और कुछ बंजारे वाले वेश में भगत सेवादार के लिए और स्वयं कबीर साहिब, केशव बंजारे का रूप धारण किया और अपने निजधाम सतलोक से काशी में की। शहर में एक क्षण में पृथ्वी के ऊपर आ गए भंडारा इतना अदभुत था सभी तरह की सुविधाओं ऐनकर्स टाइप के पेपर कोई बहुत बार भी खाए किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं थी भंडारा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मोहर और इलाज भी दी जा रही थी। चाहे वह बहुत बार ही भंडारा करें हर बार मोहर और सही दी जा रही थी
राजा सिकंदर लोदी भी इस तरह के भंडारे को देखकर आश्चर्यचकित हो गए जब उन्होंने केशव बंजारे से बातचीत की तो उन्होंने पूछा की कबीर साहेब कहां है तो केशव बंजारे ने कहा की आ जाएगा प्रभु जब दया हो तो केशव बंजारे ने कहा यह तो छोटा सा भंडारा है क्या मैं तो कबीर जुलाहे का पगड़ी बदलकर यार हूं
जबकि कबीर भगवान जुलाहे रूप में अपने भगत रविदास के साथ अपनी कुटिया में विराजमान थे
सिकंदर लोदी इस तरह के भंडारे को देखकर कबीर भगवान की कुटिया की तरफ गए और उन्हें सम्मान पूर्वक अपने हाथी के ऊपर बिठा कर लाए जहां भंडारा चल रहा था चारों ओर कबीर परमेश्वर की जय जयकार हो रही थी कि आशी शहर के लोग चर्चा कर रहे थे। नहीं आज तक ऐसा भंडारा नहीं देखा। लेकिन वहाँ शेख़तकी पीर जो की राजा सिकंदर लोधी का धार्मिक गुरु था, वह कबीर साहेब जी से इर्ष्या वश होकर कहने लगा की "क्या भंडारा किया है, इसलिए तो हम रोज कर दे।"
इस विषय मे परमात्मा की वाणी है
कोई कहे जग जोनार करी है, कोई कहे महोचा।
बड़ा बड़ाई किया करे, गाली काढ़े ओछा। ।
4. au-hypan की कथा
एक समय साहेब कबीर अपने भक्त सम्मन के यहाँ अचानक दो सेवकों (कम व शेखफरीद) के साथ पहुँच गए। सम्मन के घर कुल तीन प्राणी थे। सम्मन, सम्मन की पत्नी नेकी और सम्मन का पुत्र सेऊ (शिव)। भक्त सम्मन इतना गरीब था कि कई बार अन्न भी घर पर नहीं होता था। सारा परिवार भूखा सो जाता था। आज वही दिन था। भक्त सम्मन ने अपने गुरुदेव कबीर साहेब से पूछा कि साहेब खाने का विचार विकल्प, खाना कब खाओगे? कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख लगी है। भोजन बनाओ। सम्मन अंदर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि अपने घर अपने गुरुदेव भगवान आये हैं, उनके लिए भोजन। केवल नेकी ने कहा घर मे कुछ नही है बनाने के लिए। तब उसने सोचा कि पड़ोस से मांग लू, लेकिन सबने कहा तुमरे घर तुम कहते हो भगवान है कबीर जी। तो अब हमारे घर क्यों आये हो, तभी सम्मन ने कहा कि एक सेठ है उसकी खिड़की से आटा ले आया। तब से यू को भेजा खिड़की से आटा लेन के लिए, फिर जैसे सेउ अंदर गया, सेठ उठ गया और सेउ ने आटा बाहर अपने पिता सम्मन को दे दिया वो घर आया, नेकी ने पूछा है कहा से है? तो सम्मन ने कहा सेठ ने पकड़ लिया, तब नेकी ने कहा उसकी गर्दन काट लाओ अगर उसका चेहरा किसी ने देखा है तो हमारे भगवान में दोष निकाला जाएगा, की यह कबीर जी के चेलों है।
फिर सम्मन सेउ की गर्दन काट लाता है और फिर नेकी खाना बनाती है, फिर तीन प्लेट में खाना अलग अलग रखता है। कबीर जी के साथ दो शिष्य भी थे, तब कबीर जी ने कहा की छह: थालियों में भंडारा लगाओ, नेकी 6 थालियों मे भोजन लगा दिया है। लेकिन मन में सोचती है सेउ तो मर गया है, लेकिन कबीर साहेब तो अंतर्यामी है, उन्होंने कहा "शीश तो चोरों के कट्ते है भगतो के नहीं", तभी से उ के शीश लग जाते है और कही खरोच तक नहीं थी।
जो चे सो करदे सतगुरु, भ्रम पड़ना मत कोई।
5. भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना
कबीर साहेब जी एक लीला स्वरूप स्वामी रामानंद जी को गुरु बनाये जिससे गुरु पद्ति बनी रहे। कबीर साहेब जी ने स्वामी रामानंद जी को तत्वज्ञान कराए जिससे रामानंद जी जान गए थे की कबीर साहेब स्वंम भगवान हैं। वे कबीर साहेब जी द्वारा बताए मन्त्र जाप करते थे लेकिन लोगो की नजरों में कबीर परमात्मा जी के गुरू कहलाये। स्वामी रामानन्द जी जहाँ भी किसी सत्संग-समागम में जाते थे तो कबीर जी को साथ लेकर जाते थे। एक समय एक तोताड़ी नामक स्थान पर सत्संग था। दूर-दूर के ब्राह्मण, पंडित लोग वहाँ पधारे। स्वामी रामानन्द जी भी भगवान कबीर जी के साथ उस सत्संग में शामिल हुए।
उस समागम में एक महामंडलेश्वर आया था। वह सत्संग कर रहा था। प्रसंग चल रहा था कि रामचंद्र जी ने भीलनी के झूठे बेर खाये। इसी तरह साधु सन्तो को भी सहनशील स्वभाव के होना चाहिए।
सत्संग के पश्चात भोजन-भण्डारा शुरू हुआ। मुख्य पाण्डे को पता चला कि स्वामी रामानंद जी के साथ कबीर आया हुआ है वह जुलाहा जाता से है। वह रामानन्द के साथ ब्राह्मणों वाले पंडाल में भोजन करने के लिए साथ करेंगे। यदि मनाओगे तो रामानन्द जी नाराज हो जाऐंगे। उन्होंने एक योजना बनाई और कहा कि जो ब्राह्मणों वाले भण्डारे में भोजन करेंगे, उन्हें वेद के चार मन्त्र सुनाने होंगे। सभी ब्राह्मण पंडित चार-चार वेद मन्त्र सुना कर प्रवेश कर रहे थे।
जब कबीर जी की बारी आई तो उनसे भी कहा कि चार वेद मन्त्र सुनाओ। तब भगवान ने देखा कि थोड़ी-सी दूरी पर एक भैंसा घास चर रहा था। भगवान कबीर जी ने भेसा को हुर्र कह कर पुकारा। भैंसा दौड़ा-दौड़ा आया।
तब कबीर जी ने उस भैंसे की कमर पर हाथ से थपकी लगाई और कहा कि भैंसा जी इन पंडितों को वेद के चार मन्त्र सुनाओ।
भैंसे ने 6 मन्त्र सुना दिया। भगवान कबीर जी ने कहा कि भैंसा जी पंडितों को भी सुना दे।
भैंसे ने शुद्ध उच्चारण करके वेदों के मन्त्रो का भी किया की कविर्देव ही परम शान्ति दायक है। वह पापों का नाश करने वाला बन्दी छोड़ कविर्देव है। वह पूर्ण परमात्मा अपने तेजोमय स्वरूप को कम करके अपने लोक से चल कर आता है। अच्छी गिल को मिलता है, वह भगवान आपके पास यह कबीर धानक खड़ा है।