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Happy New year,happy birthday,या Good morning क्यों नहीं बोलना चाहिए? आइये जानते है इस पोस्ट में

आइये अब आद्यात्मिक तरीके से इसे समझते हैं- गुड मॉर्निंग,गुड नाईट,हैपी न्यू ईयर,हैपी बर्थ डे या किसी को आशिर्वाद न देने में हमारा फायदा:-

           सतयुग,द्वापर, त्रेता में हमारे पूर्वज नेक नियति से रहते थे और ज्यादातर परमात्मा से डरने वाले होते थे । इसलिए जो भी भक्ती विधि उन्हें उनके गुरुओं द्वारा बताई जाती वो उस विधि अनुसार तन मन से समय मिलते ही उसमे लगे रहते थे। क्षमा, दया,दान विवेक, सत्यवादिता ये उस समय के लोगों के आम गुण थे। ॐ नाम तक की नि:स्वार्थ भक्ति करने के कारण उनमें जुबान सिद्धि आ जाती थी।
          श्राप और आशिर्वाद ये उन्ही युगों से चली परम्परा है। वो अगर किसी बीमार के सर पे हाथ रख के ये भी कह देते थे कि 'कोई नहीं ठीक हो जायेगा' तो वो बीमार आदमी राहत महसूस करता था। और हम आज लगभग सभी गुणों से हीन हो चुके हैं। भक्ती की बात करते ही आजकल लोग चिढ़ते हैं और हम उन युगों की परम्परा ढोह रहे हैं ।
         वास्तव में आज भी बेशक हमारे पास इस जन्म की भक्ती कमाई नहीं है। लेकिन कई बार हम पिछले जन्मों की कमाई लेकर पैदा होते हैं और उसे हम किसी को गुड मॉर्निंग कह कर,आशिर्वाद दे कर और किसी को हैप्पी न्यू इयर कह कर उसको भी बाँट देते हैं।
        ठीक वैसे ही जैसे किसी पानी के भरे घड़े में निचे छेद कर दिया जाये और पानी डाला ना जाये तो वो कितने दिन चलेगा।वो पिछली पूण्य कमाई खर्च होते ही हमारे बुरे दिन शूरू हो जायेंगे। विचार करें ! कि क्या हमारे हैप्पी न्यू ईयर कहने से उनका पूरा साल खुशी से गुजर जायेगा?। या गुड मोर्निंग कहने से क्या उसकी सुबह गुड हो जाएगी?
       नही, क्योंकि ये पावर तो सिर्फ और सिर्फ पूर्ण परमात्मा या उनके भेजे किसी संत के पास ही हो सकती है क्योंकि उनकी पावर खत्म नही होती।
       हमें अपनी भलाई और वापिस सतलोक गमन जहां से हम सभी आये हैं वहां जाने के लिए ये पूंजी संजोकर रखनी होगी और पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परम्पराएं छोड़नी पडेगी ,सत्य साधना की खोज करनी होगी। और वो सत्य साधना आजकल बड़ी ही आसानी से उपलब्ध है। 

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