Exclusive Report ::- सच बनाम झूठ
हाईकोर्ट के माननीय जज मुद्दे से क्यू भटक रहे है? सवाल ये नहीं है कि जनहित याचिका कौन दायर कर सकता है?
मुद्दा ये है त्रुटि युक्त गीता का विमोचन किया जा रहा है..
मुद्दा ये है उस मनीषी ज्ञानानंद द्वारा अनुवादित गीता का विमोचन किया जा रहा है जिस ज्ञानानंद को ज्ञान चर्चा मॆ तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ज्ञान चर्चा में परास्त चुके हैं...
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मुद्दा ये है कि जनता के खून पसीने की कमाई के करोड़ों रुपये मुख्यमंत्री हरियाणा द्वारा अपने गुरु को महिमा मंडित करने में खर्च किया जा रहा है...
मुद्दा ये है भारत के भविष्य बच्चों को उस गीता को पढ़ाने की बात की जा रही है जिसमें अनुवादकों ने अनेक गलतियाँ की हुई हैं उन्हें सुधारने की कोशिश करनी चाहिये...
(हाईकोर्ट के जजों द्वारा आरोपी को अपराधी कहना न्यायसंगत नहीं है)...
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दुख की बात है कि हाईकोर्ट ने जनहित याचिका के मुख्य विषय पर बात ना उठाकर अन्य बात उठाई जो इनके पक्षपात को इंगित करती है।
आप आरोपी व्यक्ति को अपराधी नहीं कह सकते...पहले राजाओं के जुबान पर ही कानून होता था लेकिन आज ऐसा नहीं है, आज लोकतांत्रिक भारत में संविधान और कानून की व्यवस्था है जिससे अन्तर्गत जज और नेता भी आते है। ये संविधान के अन्तर्गत है, संविधान से बाहर नहीं। जज की जुबान कानून नहीं है, अकबर और जज में अंतर है।
माननीय जज जानना चाहते है कि सन्त रामपाल जी महाराज ने जनहित के क्या कार्य किये है...
यह बात उन लोगों से पूछो जिन्होंने उनकी दया उदारता व रहमत को देखा है और अनुभव किया है। ऐसे जनहित के कार्य उन लोगों को कैसे दिखाई दे सकते है जो एडी से चोटी तक बेईमानी तथा भ्रष्टाचार में डूबे हो??
पक्षपाती जज कभी भी न्याय नहीं कर सकता। और ऐसे जजों से न्याय की उम्मीद भी नहीं की जा सकती।
यह बात उन लोगों से पूछो जिन्होंने उनकी दया उदारता व रहमत को देखा है और अनुभव किया है। ऐसे जनहित के कार्य उन लोगों को कैसे दिखाई दे सकते है जो एडी से चोटी तक बेईमानी तथा भ्रष्टाचार में डूबे हो??
पक्षपाती जज कभी भी न्याय नहीं कर सकता। और ऐसे जजों से न्याय की उम्मीद भी नहीं की जा सकती।
सत्यमेव जयते!
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