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परमात्मा - की परिभाषा

दुनिया में किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नहीं रहना चाहिए, बिना गुरु के कोई भी दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है !!

समस्त पृथ्वी पर एक ही जीवित व्यक्ति की पूजा होती है क्योकि वह व्यक्ति नही स्वयं परमात्मा है । वह एक सन्त की भुमिका भी हमारे बुद्बि दोष के कारण करते है क्योकि हमारी बुद्धि का इतना सामर्थ नही है कि वो परमात्मा को समझ सके। जिस प्रकार चर्म दृष्टि परमात्मा का हल्का तेज ही सहन कर सकती है वैसे ही ये चमडे की बुद्धि सन्त रूप ही सहन कर सकती है।वह भी सब लोगो की नही सिर्फ उनकी जिन पर उसकी मेहर हो।

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